
महाभारत युद्ध उसके सभी पात्रों के ह्र्दय की टीस का परिणाम था! या अधिक मोह का ! महाभारत के पात्र किसी के लिए बहुत मोह य फिर टीस लेकर जी रहे थे! भीष्म अपनी प्रतिज्ञा और राज धर्म के मोह में डूबे थे! गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर अपने पति की भक्ति में राजधर्म भुला दिया था वही हस्तनापुर नरेश पुत्र मोह में भूल गये कि वे जिस सिंहासन बैठे हैं वह उनका नही हे! गंधार नरेश को अपनी की आँखों पर वंधी पट्टी भाले की तरह ह्रदय में चुभती रही! इस तरह हर कोई य तो किसी के प्रेम में अँधा था ईर्षा में जैसे कर्ण मित्रता में अँधा था दुर्योधन राज गद्दी पाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तेयार था तो दुशासन अपने भाई के लिए कुछ भी करने के लिए तेयार था!
आज हम महाभारत के ऐसे पात्र का जिक्र करते हैं! जिसने महाभारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है! यह महानायक थे, द्रोणाचार्य !
द्रोणाचार्य का जन्म
महाभारत के अनुसार एक बार भारद्वाज ऋषि ने महायज्ञ का आयोजन किया! इतना बड़ा आयोजन देखकर देवताओ का राजा इन्द्र डर गया! वह सोचने लगा कही महर्षि स्वर्ग पर अधिकार तो नही करना चाहते ! अत; वह इस महायज्ञ को रोकने का यत्न करने लगा! उसने घ्र्रिताची नामक अप्सरा को पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया!
भारद्वाज जब स्नान करने गये वहां सरोवर में एक अप्सरा को स्नान करते देखा ! वह उसे देखकर कामातुर हो गये उनका वीर्य स्खलित हो गया जिसे वे एक द्रोण में रखकर यज्ञ करने आ गये! यज्ञ करने बाद जब वे अपनी कुटी में पहुचे वहाँ एक बालक को रोते हुए देखा! क्योंकि बालक एक द्रोण में उत्पन्न हुआ था! इसलिए उस बालक नाम द्रोण रखा गया!
दूसरे मत के अनुसार भारद्वाज ऋषि ने जब घृताची को सरोवर में स्नान करते देखा तो वे कामातुर हो गये! घृताची भी कामातुर थी! उसी समय दोनों ने ससर्ग किया जिसके परिणाम स्वरूप एक बालक जन्म हुआ जिसे द्रोण के नाम से पुकारा गया ! द्रोण आश्रम में ही रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहा था , द्रोण केसाथ प्रस्त नामक राजा का पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहा था! दोनों के गहरी मित्रता हो गई ! तभी भगवान परशुराम अपनी सारी सम्पत्ति ब्राह्मण को दान करके महिन्द्राचल पर्वत पर चले गये! उसी समय द्रोण उनके समक्ष गये तथा विद्या दान देने का आग्रह किया! भगवान परशुराम ने द्रोण को अस्त्र -शस्त्र, वेद पुराण , आदि में पारंगत कर दिया ! परशुराम ने द्रोण को अपनी ही तरह शक्तिशाली बना दिया अब वह परशुराम के समान योद्धा एवं आचार्य के रूप में विख्यात हो गया!
महाभारत काल में समाज चार वर्गों -ब्राह्मण, छत्रिय , वैश्य एवं शूद्र आदि वर्गो में विभाजित था इनमें सबसे शक्ति शाली छत्रिय थे! क्योंकि राज्य करने का अधिकार केवल छत्रियों के पास था , ब्रह्मण आश्रम बना कर शिक्षा प्रदान करते थे! जिन आचायों को राजाश्रय प्राप्त नही होता था उनकी स्थिति दयनीय थी !
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द्रोणाचार्य |
सका जीवन कष्टमय था! द्रोण सर्वशेष्ट आचार्य होने के बाद भी कष्टप्रद जीवन बिता रहा था सम्म्पत्ति के नाम पर उसके पास एक गाय तक नहीं थी! एक बार बालक अश्व्स्थामा दूध के लिए मचल गया! कृपी बहुत देर तक उसे समझाने असफल प्रयास करती रही परन्तु वह नहीं माना तब कृपी ने एक कटोरी में आटा घोल कर दिया और कहा पुत्र यह दूध हे! द्रोण से ये नहीं देखा गया1! द्रोण को अपने मित्र द्रुपद की याद आई तब द्रोण ने कृपी से कहा -"" मैं अपने मित्र द्रुपद के पास जाकर एक गाय मांगकर लाता हूँ , जिससे हमारे पुत्र को दूध के लिए कभी रोना नहीं पड़ेगा!" यह कहकर द्रोण अश्वस्थामा को साथ लेकर पांचाल राज्य कीओर निकल पडा! द्रोण के मन में कई वर्षों में अपने मित्र से मिलने की लालसा थी एवं उत्साह भी, अपने बचपन के मित्र से मिलने के लिए उसके कदम तेज़ी से बड़ने लगे वह जल्दी ही अपनी मंजिल पर पहुचना चाहता था ! अंततः वह पंचाल नरेश द्रुपद के सामने था! अति उत्साह एवं आनन्द के कारण वह भूल गया कि वह पंचाल की राज्य सभा में हे! द्रोण सोच रहा था की द्रुपद आगे बड़कर उसे गले लगा लेगा उसी उत्साह में द्रुपद की तरफ बड़ने लगा तभी सैनिकों रोक दिया- "रुको कौन हो तुम?" द्रोण बोला- "मुझे जाने दो मैं पांचाल नरेश के बचपन का मित्र द्रोण हूँ!" द्रोण की आवाज सुनकर राज दरवार में एक अट्टहास की गूंज सुनाई दी- ''एक भिखछुक ब्राहमण पंचाल नरेश का मित्र, बचपन भूल जाओ बचपन तो अंजान होता हे! तुम्हे याद रखना चाहिए मित्रता हमेशा बराबर की होते हे! एक राजा और व्राह्मण की कैसी मित्रता!"! द्पद जोर- जोर से हंसने लगता हे- '' बताओ क्या दान चाहते हो सोना, चांदी, मानिक . रत्न जितनी गाय चाहिए गौ शाला से ले सकते हो1 परन्तु एक भिख्छुक की तरह, मित्रता भूल जाओ क्योंकि एक राजा और गरीब व्राह्मण की मित्रता नही हो सकती!'' द्रोण को द्रुपद से इस व्यवहार की उम्मीद नही थी! उसके पैरों के नीचे से जैसे किसी ने फर्श हटा दिया हो कुछ देर सोचने के बाद द्रोण ने कहा- '' हे द्रुपद! मैं तुझे अपने बचपन का मित्र समझ कर, मात्र एक गाय मेरे पुत्र के लिए मांगने आया था! परन्तु तूने मेरा अपमान कर दिया! मैं प्रण लेता हूँ , एक दिन फिर आऊंगा तब तुझ में और मुझमे कोई अंतर नही होगा! तब मैं तुझे अपना मित्र कह सकूंगा, तुझे भी मुझे मित्र कहने में संकोच नहीं होगा!'' द्रोण का क्रोध अपनी सारी सीमाएं लाँघ चुका था! परन्तु उसने अपना विवेक नही खोया वह अपने पुत्र को लेकर राज्य सभा से बाहर आ गया! अब उसके समझ में नही आ रहा था कि वह कहा जाए ! उसे कृपी को दिया बचन याद आ रहा था! वह उसके पुत्र को एक अवश्य लाकर देगा! अब इस अपमान की बात उसे कैसे बताएगा! उसके मनमें विचारों का समुन्द्र हिलोरे मार रहा था! वह निर्णय नही कर पा रहा था1 वह कहाँ जाए! इसी उधेड़-बुन में उसे पता ही नही चला कि वह कब रास्ता भटक गया! वह जिस रास्ते पर जा रहा हे वह आश्रम की ओर नही अपितु हस्तनापुर की ओर जाता है!
Drona got married to Kripi, Kripi was the sister of Rajguru Kripi of Hastnapur. Shortly after the marriage, Kripi gave birth to a son who came to be known as Ashwathama. Drona did not get any royal shelter.
This is not seen from Drona1! When Drona remembered his friend Drupada, then Drona said to Kripi - "I go to my friend Drupada and ask for a cow, so that our son will never have to cry for milk!" Saying this Drona took Ashwathama along with him. Panchal set out towards the kingdom!
He was finally in front of the Panchal king Drupada! Due to over enthusiasm and joy, he forgot that he was in the Rajya Sabha of Panchal. Drona was thinking that Drupada would go ahead and embrace him, in the same enthusiasm, he started moving towards Drupada, when the soldiers stopped - "Wait who are you?" Drona said- "Let me go, I am Drona, the childhood friend of the Panchal king!" Drona's voice